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कुछ मित्रों को इकट्ठा करें या मौजूदा छोटे समूह के साथ प्रशिक्षण लें। अपनी स्वयं की प्रशिक्षण योजना बनाएँ और अपनी प्रगति को ट्रैक करें।
प्रत्येक शिष्य को यह देखने के लिए सुसज्जित होना चाहिए कि राज्य कहां नहीं है। हमारे चारों ओर ऐसे स्थान होते हैं जहां परमेश्वर की इच्छा पृथ्वी पर पूरी नहीं हो रही होती है जैसे वह स्वर्ग में होती है। वहां विशाल दरारें होती हैं जहां टूटना, दर्द, उत्पीड़न, पीड़ा और यहां तक कि मृत्यु भी सामान्य, रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा होते है। इस धरती पर रहते हुए राज्य के लिए मेहनत लेकर हमें उन दरारों को भरना है। यह देखने के लिए हमारी आंखें खोलना कि राज्य कहां नहीं है और उन लोगों के द्वारा जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम जानते भी नहीं हैं वहां तक पहुंचने से शिष्य गुणा होते हैं और परमेश्वर का राज्य दूर तक और जल्द बढ़ता है।
हमें परमेश्वर की इच्छा पृथ्वी पर सिद्ध रीती से पूरी होने और वर्तमान में मौजूद स्थिति के बीच की दरारों को देखना जरुरी है। इसे दो क्षेत्रों में होने की आवश्यकता है:
पहला क्षेत्र हमारे मौजूदा रिश्ते हैं। इसमें हमारे मित्र, परिवार, सहकर्मी, सहपाठी और संभवतः पड़ोसी शामिल होते हैं। इस तरह सुसमाचार सबसे तेज गति से आगे बढ़ता है। इन लोगों के लिए चिंता स्वाभाविक है। लूका 16:19-31 में हम देखते हैं कि कैसे नर्क में तड़प रहा धनी व्यक्ति भी अपने परिवार के लिए इस तरह का प्रेम और चिंता रखता था। इन लोगों को परमेश्वर हमारे जीवन में रखता है, और हमें इन रिश्तों को प्रेम और धैर्य और दृढ़ता के साथ अच्छी तरह से निभाने की जरूरत है।
आप लोगों के इस समूह में मसीह के अनुयायियों को उनके जान-पहचान के 100 लोगों को सूचीबद्ध करने को कहने के द्वारा उन्हें सुग्राही बना सकते हैं। उन्हें तीन समूहों में वर्गीकृत करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें: वे जो मसीह का अनुसरण करते हैं, वे जो मसीह का अनुसरण नहीं करते हैं, और वे जिनकी आध्यात्मिक स्थिति अज्ञात है।
वे फिर उन लोगों को जो मसीह का अनुसरण करते हैं, अधिक फलदायी और विश्वासयोग्य बनाने के लिए लैस करने और प्रोत्साहित करने की कोशिश कर सकते हैं। वे उन लोगों को "शिष्य" बनाने के तरीके ढूंढना शुरू कर सकते हैं जो अभी तक राज्य में मसीह का अनुसरण नहीं कर रहे हैं।
दूसरा क्षेत्र जहां हम देख सकते हैं कि राज्य नहीं हैं, वे हमारे मौजूदा रिश्तों या संपर्क के बाहर के लोग हैं। यीशु ने उसके शिष्यों को निर्देश दिया कि वे पृथ्वी पर हर लोगों के समूह को शिष्य बनाएं।
उसने उन्हें उन लोगों को शिष्य बनाने के लिए निर्देशित किया जहां वे वर्तमान में रह रहे हैं साथ ही पास में स्थित लोगों को, और उन लोगों के बीच जो उन से अलग थे, और यहां तक कि "पृथ्वी के छोर" तक भी।
इस तरह से सुसमाचार दूर तक फैलता है। यह स्वाभाविक नहीं है। यह अलौकिक है। यह हमारे जीवन में पवित्र आत्मा का प्रमाण है। परमेश्वर की अपनी पसंद होती है। उसकी पसंद सबसे छोटे, पीछे रहनेवाले, और खोए हुए लोग है। इसलिए हमें अपने जीवन को न केवल अपने करीबी लोगों की सेवा में लगाना चाहिए, बल्कि उन लोगों की भी सेवा करनी चाहिए जो दुनिया के आध्यात्मिक रूप से सबसे गहरे कोनों में हैं। परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है परन्तु विनम्र लोगों को अनुग्रह देता है। हमें उन लोगों की सेवा करनी चाहिए जो हताश हैं। हताश सबसे विनम्र लोग होते हैं। ऐसे लोगों के साथ, हमें विशेष रूप से उन लोगों की तलाश करने और उनमें निवेश करने की आवश्यकता है जो विश्वासयोग्य हैं।
याद रखिए कि परमेश्वर जो प्रकट करता है उसका आज्ञापालन करने द्वारा और उसे दूसरों के साथ साझा करने द्वारा ही विश्वासयोग्यता दर्शायी जाती है। ये लोग यीशु के दृष्टांत की अच्छी मिट्टी की तरह हैं। ये वे हैं जो 30, 60 या 100-गुना फल देते हैं। वे कठोर दिल वाले नहीं होते हैं जो संदेश को अस्वीकार करते हैं। ये वे नहीं हैं जो उत्पीड़न होने पर छोड़ चले जाते हैं। ये वे नहीं हैं जो दुनिया की चिंताओं या धन से विचलित होते हैं। वे गिरासेनियों के दुष्टआत्माग्रस्त व्यक्ति की तरह हैं जिसने यीशु की सेवकाई को उसका आज्ञापालन करने और परमेश्वर ने उसके लिए जो कुछ किया था उसे दूसरों के साथ साझा करने द्वारा प्रतिसाद दिया था। परिणामस्वरूप, जब यीशु उस क्षेत्र में फिर लौटा, तब लोगों की भीड़ उसकी राह देख रही थी।
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